Friday, December 26, 2008

साल २००८
( चार कदम आगे एक कदम पीछे )
यह साल कई मायनो में खुशनुमा साबित हुआ। लेकिन कुछ पलों में निराशा भी दे गया। खेलों में हमने नई पताकाएं फहरायी । खेलों ने महेंद्र सिंह धोनी, सायना नेहवाल ,मेरिकाम ,अखिल कुमार, विजेंदर सिंह, सुशिल कुमार, अभिनव बिंद्रा, जीतेन्दर ,पंकज आडवानी ,दिवाकर राम जैसे नई युवा सनसनियों के दर्शन कराये। वहीँ आल टाइम फेवरेट सचिन, विश्वनाथ आनंद ने अपनी सफलताओं में एक -एक और मील का पत्थर रखा ।
इसरो ने चन्द्रयान के सफर में मानव रहित यान भेज हमारे लिए नई दुनिया का रास्ता खोला। वहीँ साहित्य तथा फिल्मों के सफर में हमने नए विचारों, नई रचनात्मक्त सोच की भी उथल पुथल देखी । सरकार की एकमात्र उपलब्धी परमाणु करार ने साबित किया की हम विश्वभर में एक सशक्त देश के रूप में उभर रहे हैं। जिसकी अनदेखी करना अब सम्भव नहीं है।
वहीँ हमारे लिए निराशाजनक पहलु यह रहा की हम पूरे साल भर बम विस्फोटों और आतंकवाद से जूझते दिखे। इस मोर्चे पर हमें हार ही हार मिली । यहाँ तक छेत्रियता की लडाई में भी हम अपनों के खून की होली खेलते रहे , इससे बड़ा शर्मनाक पल क्या हो सकता है।
शेयर बाजार जो साल के शुरूआती दौर में पुरे उफान पर था। साल के मध्य में धरासायी हो गया और अंत तक जूझता नजर आ रहा है। सब चिंतित नजर आ रहे हैं। लेकिन यह भी सत्य है की पैसे से पैसा बनाने के इस खेल में एक चौथाई से भी कम जनसंख्या निर्भर है । हम सम्हल सकते हैं। कुल मिलाकर पूरे साल में जहाँ हम चार कदम आगे बढे वहीँ एक कदम पीछे भी हुए ।
" अलविदा 2008 "

Wednesday, December 10, 2008

बमों के धमाके पे बैठा मेरा हिंदोस्ता

" हमें अपनों ने लुटा /गैरों में कहाँ दम था/हमारी किश्ती वहाँ डूबी /जहाँ पानी कम था "। एक फ़िल्म के शायराना अल्फाज सटीक बैठते हैं हमारे मुल्क पर ; जो आज बमों के ढेर से छलनी हुए जा रहा है। किस गली , किस चौराहे , किस सभा में क्या हो जाए हमें कुछ पता नहीं। लगता है जिंदगियों के कोई मायने नहीं रहे। हमारे अपने देश के टुकड़े से बना पाकिस्तान जो सन १९४७ से लगातार हमारे लिए परेशान किए जा रहा है। और अबकी इतना बड़ा दुस्साहस चाक - चौबंद सुरक्षा से लैस इलाका ताज होटल, ओबेरॉय होटल और नरीमन हॉउस सब के सब को धूल धूल कर दिया।

पूर्वोतर में गुवाहाटी से लेकर पश्चिम में मुंबई , अहमदाबाद उत्तर में जम्मू-कश्मीर, दिल्ली से लेकर दक्षिण में बंगलुरु तक सब जगह बमों के गर्दो - गुबार में खून की होली खेलते हुए आतंकवादी । जब चाहे जहाँ चाहे अपने मकसद में सफल हो रहे हैं। कोई रोक- टोक न रही अब। इन धमाकों में इंसानों के मांस के लोथडे चिथड़े -चिथड़े हो रहे हैं । ये बड़ा भयानक,वीभत्स और लोह्मर्सक है। पिछले छः - सात महीनो से देश को उथल- पुथल करके रख दिया है। केन्द्र सरकार मानो कुछ करने में असहाय नजर आ रही है। अब अगर जरुरत है तो अपनी आतंरिक सुरक्षा के बारे में ठोस फैसले लेने की। और सबसे ज्यादा जरुरत है तो पुलिस फोर्स की परिभासा बदलने की। इसे भी कड़वे घूंट पिलाने की जरुरत है, नहीं तो ये नई दुल्हन की तरह सजावटी नजर आता है। अगर अब भी हम नहीं सुधरे तो -----

" यूँ ही बमों के गर्दो-गुबार में अपनों के छितरे शरीरों को खोजते नजर आयेंगे "