Saturday, August 30, 2008

"बिमारी की इन्तहां हो गई"

एक शख्स जिसे मैंने चंद वर्षों पहले जिन्दगी के इस बगिया में हँसते हुई देखा था। आज वह हमेशा बीमार ,बेजार और मुरझाया नजर आता है। ऐसे सख्स आपको हर गली मौहले में मिल जायेंगे । वे सालों से बिमारी का फ़साना लिए नजर आते हैं। उन्हें बेचारे का मैडल मिल जाता है। ऐसा क्यों ? क्या वे जिन्दगी जीना नहीं चाहते हैं ? ऐसा नहीं है, फिर भी ऐसा क्यों ?
शायद वे जिन्दगी से लड़ने का जज्बा भूल चुके हैं। उन्हें जिन्दगी कीपरेशानियों ने कायर बना दिया है। लेकिन वे ये भूल रहे हैं की जिन्दगी में सफल होने के लिए संघर्षों की राहों से होकर गुजरना पड़ता है।
किसी शायर ने ठीक ही कहा था ‘जिन्दगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या ख़ाक जियेंगे’
एक फिल्मी गाने के बोल ये थे "रुक जाना नहीं तू कहीं हार के , काटों पे चलते मिलेंगे साए बहार के ------"
मानव प्रकृति हमेशा से जुझारू रही है । उसने हर असंभव को सम्भव कर दिखाया। हम चाँद तक पहुचने के बाद अब मंगल और सूर्य तक पहुँचने की बात करते हैं। आख़िर कैसे ? ये हमारे उन नायकों ने कर दिखाया । उन बीमारू मानसिकता को ठेंगा दिखाया , वे लदे संघर्ष किया और आज हम उन्ही नायकों को आदर्श मानकर इन संघर्सों की कठिन राहों से जूझते हुई आगे बढ़ रहे हैं। एवरेस्ट फतह किया,उड़ते हुई पंछियों को देखकर विमान तैयार कर दिए , तैरती हुई मछलियों को देखते हुई पानी के जहाज बना दिए , कई लाइलाज बिमारियों की दवा बना डाली । यहाँ तक की कृत्रिम बारिश का भी जुगाड़ कर लीया। एक धावक उसेन बोल्ट इन ओलंपिक खेलों में इतना तेज भागा की हवा का रुख चीरते हुऐ९.६९ सेकंड की गति से १०० मीटर रेस जित गया। मार्क फेलप्स बचपन में माता –पिता का तलाक; लेकिन वो भी उस तैराक की राहें रोक नहीं पायी। प्रेरणा ली संघर्सों से। इस ओलंपिक में आठ स्वर्ण जीतकर इतिहास रच दिया। जिसमे ६ विश्व रिकार्ड धो डाले । रूस की महिला पोलवाल्टर इब्सियानेवा जो हर प्रतियोगिता में एक विश्व रिकार्ड धो डालती है। आख़िर कैसे ?
ये उनका जज्बा है,जुझारूपन है , संघर्षों से लड़ने की छमता है। उन्होंने जिन्दगी के मानदंड तय किए हैं। जो उन्हें हमेशा विजेता बनाते हैं। क्या आप को याद है बास्केटबाल का माइकल जोर्डन , जो नब्बे के दशक में ऐड्स जैसी गंभीर बिमारी से ग्रस्त हो गया था। लेकिन वो लड़ा इस लाइलाज बिमारी से । आज भी हंसी खुशी जी रहा है। जो दूसरो के लिए मिसाल बन गया है।
मेरे कहने का मतलब है आप लड़िये अपने मैं छायी इन बिमारियों से । अपने जीने का ढंग बदलिए ,जुझारू बनिए। एक दिन आप भी इन बिमारियों की परछाई से बाहर निकल के विजेता बनोगे। लोग देखेंगे आप के अन्दर पैदा हुए एक नायक को। शायद में जब उस गली से गुजरूँ तो उस बगिया में एक हंसता मुस्कराता चेहरा मुझे दिखाई दे ।
लडो खूब लडो , उस गायब परछाई से.
जो तुम पे हावी है, वो जज्बा दिखाओ.
जो तू में से एक विजेता पैदा करे.”

तू हिंदू मैं मुसलमा, मैं हिंदू तू मुसलमा

म्यान में तक्शीम हो चुकी तलवारे एक बार फ़िर बाहर निकल आई है । हर जगह दहसत गर्दी आलम है । कई घर के लाल कब्रों में दफ़न हो रहे हैं , तो कई शमशानों में जल रहे हैं । मानवता दफन हो रही है ,इन चंद जालिम लोगों के फरमान से .मजहबी दीवारें खड़ी हो गई है। हर इंसान का अपना कोई वजूद न रहा वो सिमट के रह गया इन जज्बाती मजहबी समूहों मैं । गले मिलने की रश्म आज खाकसार हो रही है। आज सिर्फ़ बाकी रह गया तो तू हिंदू मैं मुसलमा , मैं हिंदू तू मुसलमा। कहाँ छुट गए वो रश्मो रिवाज़ , वो रिश्ते , आज सब कुछ ख़त्म , खत्म और खाक हो रहा है । आज हमारे लिए वो रिश्ते वो आदावार्जी सब पीछे छुट गए हैं। आज भावनात्मक रूप से हम अपने धर्मों के लिए जंग लड़ने मैं व्यस्त हैं । इससे कुछ नहीं मिलेगा शायद नहीं ? हम सब जानते हैं , इतिहास गवाह है। पर फ़िर भी हम अनजान बनकर लदे जा रहे हैं। क्या आज से १००-१५० साल बाद आप जिन्दा रहोगे शायद कोई भी नहीं ? फ़िर क्यों हम अपनी भावी पीढी के लिए द्वेष का माहौल तैयार कर रहे हैं ।

आज जमू-कश्मीर जल रहा है । कोई भी एक इंच पीछे हटने को राजी नहीं। बम बिस्फोटों से कभी मुंबई ,कभी अहमदाबाद ,कभी बंगलुरु, तो कभी कोई और सहर जल रहा है। हर साल मजहबी दंगे भड़क रहे हैं। हम क्यों इन लाल सुर्ख ध्बों की होली खेल रहे हैं। क्यों हम इन आकाओं , गुरुओं के फरमान पर चल रहे हैं। क्या किसी धर्म मैं ये लिखा है की आप दूसरो के खून से होली खेल कर महान बन जाओगे, या अलाह, भगवान तुम पे खुश होकर मेहरबानी करेंगे; शायद कभी नहीं। क्योंकि किसी भी धर्म में ये नहीं लिखा है की बुरे कर्मों का फल अच्छा मिलता है।

तो फ़िर तुम अनजान बन कर क्यों इन राहों पे कांटे बो रहे हो ,तुम क्यों अपने वजूद से दूर हो रहे हो ,क्यों तुम्हे खून अपना पराया नजर आ रहा है। खून तो सबका लाल है। हर किसी के माँ- बाप ,भाई -बहन हैं। क्या तुम्हे हंसता - खेलता जीवन अच्छा नहीं लग रहा है।

इन सब सवालों के जवाब तलाशोगे ,तो शायद ये मजहबी दीवारे टूट जाए। हर कोई खुसहाल नजर आएगा । तब तुम्हे फ़िर से अपना वजूद नजर आएगा। और आपके कानो में एक आवाज हमेशा जिन्दा रहेगी- ------

''हिंदू-मुस्लिम ,सिख- इसाई आपस में है भाई -भाई ''