Monday, September 10, 2012

durlabh vichar


दुर्लभ विचार ( व्यंग)


काश में भी  विधायक होता , मेरी भी निकल पड़ती।  एक बार   जीतो और फिर पुरे पांच साल तक सरकार को हिलाए  रखो , कभी ये- कभी वो। जब तक ये वो का लेनदेन है तब तक मिलता ही रहेगा। अभी खबर उडी थी की किसी राज्य  में विपक्षी पार्टी के विधायक का सौदा दस करोड़ में हुआ है। में तो अपनी सीट से उछल पड़ा। सोचा ये लाइन अपुन को भी सूट करेगा। बस एक बार जीत के आये नहीं की अपना भाव भी करोरों में लगेगा। फिर क्या पांच साल ऐश करो। ये भी अच्छा धंधा है; क्यों ? फिर पांच साल बाद पता नहीं क्या होगा। अपने हिन्दुस्तानी लोग भी क्या -क्या धंधे ढूढ लाते हैं। वैसे जो भी है मजेदार है। जनता का क्या है , हर पांच साल - दो साल में वोट दे ही देगी  पर हमें तो विधा यक बनने का एक ही चांस बहुत है। अपना देश है यहाँ तो जीतने के लिए  अधा - पौवा का नारा लगाओ और  वोट बटोर लो।  हमारी जनता तो मासूम गऊ है। जिधर हांकोगे चल पड़ेगी। अब तो बस जीत कर विधायक बनना ही पड़ेगा। मेरे जैसे कई और   दुर्लभ जंतु जो इस देश में जीवन जी रहे हैं सायद उनके भी कान खड़े हो गये होंगे। तो भया जी हम तो तैयारी में जूट जाते हैं। क्योंकि अगला इलेक्शन हमारे लिए ओलंपिक से बड़ा होने वाला है। क्योंकी  ओलंपिक जीतने पर ज्यादा से ज्यादा दो करोर मिलेंगे पर यहाँ तो अथाह समुन्दर है। दस- बारह लोटे हम भी ले लेंगे। क्या फर्क पड़ जायेगा। भया अपना भविष्य पहले है जनता का क्या वो तो गऊ है जिधर हांकोगे चल पड़ेगी।