Monday, August 9, 2010

चमचे

यारा दी गल है चमचों का ज़माना है। प्राचीन काल में राजा के साथ चाटुकार होते थे , जो राजा के इर्द - गिर्द मंडराते रहते थे। और मार्डन टाइम इन इंडिया में इन्हें चमचे कह सकते हैं, जैसे मंत्री के चमचे, हर ऑफिस में बॉस के चमचे, फला - फला आदमी के चमचे। मतलब हम औसतन देखे तो पूरे देश में हर १०० मीटर पर एक चमचा आपको नजर आ जायेगा। चमचा का शाब्दिक अर्थ देखे तो एक ऐसी जीवित डीवाइस ( मशीन ) जो अपने मालिक के इर्द - गिर्द घुमंतू रहते हैं। पूरी वफादारी से हर खबर जो इनके बॉस तक पहुंचे पहले इनके लेजर दिमाग से होकर गुजरती है। हर खुसर - पुसर पर इनकी नजर होती है। बाहर से उडती हुई ख़बरों को दबोच लेते हैं। और अपने साहेबजान को पेश कर देते हैं। इनके बॉस साहेब अपने रुतबे का रौब पूरी तरह दिखाए या न दिखाए ; लेकिन ये लोग उस रौब का इस्तेमाल पूरी तरह से करते हैं। एक दम निम्बू की तरह निचोड़ कर। हर अच्छे बुरे काम करवाने से पहले इनकी जेबे गरम की जाती है। अपने साहेब जी के सामने बेचारे दोनों हाथ बांधे खड़े होते हैं। लगता है जैसे ये दुनिया के सबसे भोले - भाले इंसान हों। लेकिन हम लोगों के लिए इनकी छातियाँ चौड़ी हो जाती है। और दोनों हाथ खुल जाते हैं। तब लगता है मानो कोई तूफ़ान से पाला पडा है। तो दोस्तों इनको नजरअंदाज न करें, इनकी जेबे गरम रखे। देश में बाघों की विलुप्त हो रही प्रजातियों के लिए लोग चिंता कर रहे हैं ; लेकिन दोस्तों इन पर भी गौर करें, उस प्रजाति को विलुप्त न होने दे।

Saturday, July 31, 2010

कठिनतम दौर

देश का शायद सबसे कठिनतम दौर । सरकार के अयोग्य मंत्रियों ने देश की भद पीट दी है। कश्मीर में अशांति, महंगाई अपने चरम पर है, नक्सलवादी जब चाहे - जहां चाहे हिंसा कर रहे हैं, कॉमनवेल्थ गेम के सफल आयोजन पर हम ससंकित हैं,पाकिस्तान से बेसिर - पैर बातचीत के दौर जारी हैं। कांग्रेस जब चुनाव जीती थी तो बड़ा शोर था - राहुल गाँधी -राहुल गाँधी। शपथ ग्रहण में कैबिनेट मंत्रियों की लम्बी लिस्ट थी। अखबार के पहले चार पेज उनका गुणगान कर रहे थे। बड़ी-बड़ी विदेशी डिग्रियों के तमगे लटके पड़े थे। लेकिन अफ़सोस कहाँ हैं;राहुल गाँधी और उनकी युवा फ़ौज और कहाँ है विदेशी डिग्री की धमक दिखाने वाले विद्वान । गरीब के घर रात बिताने से गरीबों का भला नहीं होने वाला। डा मनमोहन सिंह देश के पहले ऐसे कमजोर प्रधानमंत्री साबित हो रहे हैं, जिनके हाथ में अपने कैबिनेट की लगाम नहीं है। मेरा मानना है की डा मनमोहन सिंह जी और राहुल गांधी के लिए दो लोग आदर्श साबित हो सकते हैं ; महेंद्र सिंह धोनी और सचिन तेंदुलकर । राहुल गाँधी को सीख लेनी चाहिए सचिन से की आप बोलने से महान नहीं बनते हो, उसके लिए कर्म भी वैसे ही करने होते हैं। और मनमोहन सिंह जी सीखें धोनी से की प्रेरणादाई नेतृत्व कैसे किया जाता है।
वरना तो फिर कांग्रेस डायन देश लुटवाय जात ----------------------------------------