Thursday, August 21, 2008

आदम खोर बाघों ,गुलदारों का कुशल शिकारी ---- जिम एडवर्ड कार्बेट

( उदय सिंह रावत )

जिम एडवर्ड कार्बेट को जिम एडवर्ड कार्बेट या कारपिट साहब के नाम से भी जाना जाता है । इन्हें कुमाओं एवम गढ़वाल में आदमखोर बाघ एवम गुलदारों के सिकारी के रुप में प्रसिधी मिली थी। इनका जन्म २५ जुलाई १८७५ को नैनीताल में पिता क्रिस्टोफर कार्बेट माता मेरी जैम के घर में हुआ था। इनके पिता नैनीताल में पोस्टमास्टर थे। इनकी एजूकेशन फिलान्दर्ष स्मिथ कॉलेज नैनीताल में मेट्रिक तक हुई । कार्बेट का ग्रीष्मकालीन आवास - गर्नी हाउस नैनीताल और शीतकालीन आवास -कालाढूंगी था। जिम कार्बेट ने बिहार के मोकामा घाट में रेलवे विभाग में लकडी के आपूर्ति हेतु युल इंसपेक्टर की नौकरी की । फ़िर सहायक इंसपेक्टर मास्टर ,स्टोर कीपर ,एवं श्रमिक ठेकेदारी की । १९१४ में कुमाओं से ५०० श्रमिक फ्रांस ले गए । १९२० में रेलवे से त्याग पत्र दिया । १९२० से १९४४ तक नैनीताल नगरपालिका सदस्य भी रहे । १९४४ में ले ० कर्नल के रूप में सैनिकों के जंगल युद्ध के प्रशिक्षक रहे । जिम कार्बेट को तत्कालीन सरकार के द्बारा ''केसर ऐ हिंद'' की उपाधि से समानित किया गया । सिकारी के रूप में जिम कार्बेट ने दस वर्ष की उमर में गुलदार को मारा । '' पवल गढ़ का राजकुमार '' नामक शेर का १९३४ -३५ में सिकार करने के बाद केवल आदमखोर शेरो एवं गुलदारों को ही मारा । १९१८-१९२६ तक आठ वर्षों तक रुद्रप्रयाग के आदम खोर गुलदार जिसने रुद्रप्रयाग के आस-पास के १२५ लोगों को खा लिया था उससे मुक्ति दिलाने हेतु गुलाबराय में उसका सिकार किया था ।

जिम कार्बेट द्वारा लिखित पुस्तक -------- (१) मेंन ईटर्स ऑफ़ कुमायूं (१९४५), (२) मेंन ईटिंग लेंमपर्द ऑफ़ रुद्रप्रयाग , (३) माय इंडिया ,(४)जंगल लोर ,(५) टेम्पल टाइगर (६) ट्री टोप्स ।

इसके अलावा जिम कार्बेट ने भारत अफ्रीका के वनय जीवों पर एक फ़िल्म भी बनाई जो लन्दन के नेचुरल हिस्ट्री मु जियम में रखी गई है। एक कुशल सिकारी के साथ -साथ इन्हें वन्य जीव संरखछन के छेत्र में भी जाना जाता है । इनकी पुस्तक ''मेंन इटर्स ऑफ़ कुमायूं'' ने इन्हें विश्व विख्यात बना दिया । कुमायूं छेत्र में इन्हें विशेस रूप से जाना जाता है । १९ अप्रैल १९५५ को केन्या में दिल का दौरा पड़ने से इनका निधन हो गया । कार्बेट नेशनल की सीमा निर्धारण में उलेखनीय योगदान देने के कारण इस पार्क का नाम इनके मरने के बाद इनके नाम से इसे प्रशिधि प्राप्त हुई । जिम कार्बेट तुम हमेशा हमें याद आते रहोगे चाहे एक सिकारी के रूप में तुम्हारे दिए योगदान का जिक्र हो या एक वन्य जीब प्रेमी हर रूप में तुम याद आओगे ।

खिलाड़ी पदक और एक कदम का फासला
कुछ खिलाड़ी जिनके पावं पदक से एक कदम पहले आकर फिसल गए। ये बड़ा निराशाजनक रहा । नहीं तो हमारे पदक जितने का क्रम शायद कुछ और होता। सायना नेहवाल (बैड़मिंटन),लिएंडर पेस और महेश भूपति (टेनिस ),अखिल कुमार और जितेंदर (मुकेबाजी) ,योगेश्वर दत (कुश्ती) ये सारे खिलाड़ी पदक से एक कदम पहले यानि क्वार्टर फाइनल मुकाबलों में हारे हैं । इनके हौसले की दाद देनी होगी ,ये लडे और यूँ कहें बहादुरी से लडे । ये शान से हारे कोई गम नहीं । क्योंकि ओलंपिक में होता ही ऐसा है । यहाँ पर आप को नाक आउट मुकाबले खेलने होते हैं । रिटेक करने का चांस ही नहीं होता है । एक गलती की और पदक आपके हाथ से फिसला ।
राज्यवर्धन राठोड जो की पिछले ओलंपिक में रजत पदक जीतकर लाये थे । लेकिन इस ओलंपिक में कुछ चंद घंटों के खराब फार्म ने चार साल की मेहनत बेकार कर दी ।
यही है एक पदक विजेता और हारे हुए खिलाड़ी का अन्तर ध्यान भंग हुआ नहीं की पदक आप के हाथ से फिसला नहीं। फ़िर चाहे कई वर्ष की मेहनत हो या एक दिन की सब बेमजा हो जाती है।
वहीँ अभिनव बिंद्रा के पदक जितने के सिलसिले में एक और भारतीय सुशिल कुमार जिन्होंने कुस्ती में कांसे का पदक जीता है, जुड़ गए हैं। इतिहास में पहली बार भारत दो पदकों के साथ खडा है। वहीँ तीसरा पदक भी तय हो गया है। मुकेबाज़ विजेंदर भी सेमीफाइनल में पहुंच गए हैं।
''शाबास मेरे शेरो ''
क्वार्टर फाइनल में हारे हुए खिलाड़ियों को भी सरकार अगर कुछ इनामी राशिः प्रदान करे तो इससे इन हारे हुए खिलाड़ियों का भी उत्साह बढेगा । और वे भी अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रेरित होंगे । अखिल कुमार ने ठीक ही कहा था की '' में स्वर्ण जीतकर लाऊँगा मेरे इन शब्दों को याद रखना और अगर मुझसे कोई खता हो गई (हार गया ) तो मुझे भूल न जाना '' । तो हमें भी इन खिलाड़ियों के प्रदर्शन को भूलना नहीं चाहिए , जिन्होंने भारतीयों के जज्बे और होसले का प्रदर्शन कर दर्शकों की तालियाँ बटोरी। एक खराब प्रदर्शन से भारतीय जनता को इनकी आलोचना करने का हक नहीं है । बल्कि वक्त है इनके वर्षों की मेहनत जो की कुछ पलों में बेकार गई , उनके इस गम को कुछ कम करने के लिए इन्हें गले लगाने का और उनका वीरों जैसा स्वागत करने का । नहीं तो हमारे देश में होता यह है की जीते तो कंधे पर चढा देते हैं । और हारे तो दुत्कार मिलती है। पर आशा है की शायद ---------------- इस बार हम वो काम न करें । जिनसे खिलाड़ियों का दिल टूटता है।