Thursday, October 2, 2008

"दिलों में खटास का दौर"

आज दुनिया जितनी तेजी से बदल रही है । उतना ही लोगों का दिल और दिमाग भी बदल रहा है । हमारे देश में एक ख़ास बात है। हर जगह महफिले सज जाती है। कभी पान की दुकान, कभी सड़कों,कभी होटलों तो कहीं आफिस में चार - पाँच लोग जमा हुए नही की हर घटना पर प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू। ऐसे ही एक आफिस में प्रतिक्रियाओं का दौर चल रहा था। पाकिस्तान में हुए बम धमाकों और हाल में भारत हुए धमाकों के बारे में । सबकी एक ही मिली जुली प्रतिक्रिया रही " ठीक ही तो है इस भीड़ में से दो चार और कम हो जायेंगे "

मैं दंग रह गया । शायद यह बदलते जमाने का नया संदेश है। आज लोगों के बीच बस एक बात रह गई है । " मैं और मेरे लोग " बाकी सब मरे - बचे किसी को किसी की फ़िक्र नहीं । ये वे लोग हैं जिन पर ये विपदा नहीं गुजरी है । ये वे लोग हैं जो बदलते जमाने का नया संदेश दे रहे हैं । एक पिक्चर आई है 'मुंबई मेरी जान' । मुंबई बम विश्फोतो पर आधारित इसमे जब एक दुर्घटना में एक पत्रकार एक पीड़ित व्यक्ति से यह पूछती है की आपको कैसा लगा अपने परिजनों को खोकर । फ़िर जब उसी पत्रकार जो अपने होने वाले पति को खो देती है बम विस्फोटो में , से ये सवाल पूछा जाता है तो तब उसे लगता है की ये सवाल क्या सही है या ग़लत है ।

तो कहने का मतलब है एक पीड़ित व्यक्ति का दर्द एक पीड़ित ही जानता है। वो क्या जाने जो मीलों दूर बैठ कर प्रतिक्रियाएं देते हैं। आज भोतिक्तावादी भुत ने हमें इस कदर जकड लिया है की हम किसी और के दुःख दर्दों में सरीक होना भूल चुके हैं। सामाजिक कार्यों में भाग लेना तो बहुत पुरानी बात हो चुकी है । इस आधुनिकता में आगे बढ़ने की होड़ ,पैसों की भूख ने हमारे वजूद को तहस नहस करके रख दिया है।

पैसों के बल पर दुनिया खरीदने वाले लोगों को ये पता नहीं की यहाँ हार ही हार है । क्योंकि सिकंदर , हिटलर जैसे लोग भी खाली-खाली ही लोटे थे। अगर लोगों से पूछा जाए की १३ वी - १४ वी शताब्दी के किसी धना सेठ का नाम बताओ तो वो बगल झाकने लगेंगे। लेकिन किसी संत के बारे में पूछे तो लोगों का जवाब तुंरत आएगा तुलसीदास जी ।आख़िर लोगों को ये कैसे याद है ,ये लोगों को इसलिए याद है की अच्छे विचार जो कभी दफ़न नहीं होते हमेशा फलते और फूलते ही हैं । और वे हमेशा एक पीढी से दूसरी पीढी और कई पीढियों तक सफर करते रहते हैं। लेकिन पैसों का खेल ऐसा है की आज राजा है तो कल रंक बन जाए, इसमे कोई संदेह नहीं है।

फ़िर क्यों हम इन रिश्तों में खटास पैदा कर रहे हैं। कल शायद हममें से कोई न हो ,हमें कौन याद रखेंगे। इसलिये क्यों न आज से ही कुछ मीठे-मीठे रिश्तों की शुरुआत करें । जो हमारे जाने के बाद भी हमारी यादों को मीठा-मीठा कर दे।

"बेचारा ---उत्तराखंड क्रिकेट "

आज अधिकांश राज्यों की क्रिकेट टीमे रणजी ट्राफी क्रिकेट में प्रतिनिधित्व कर रही है । ऐसे में उत्तराखंड राज्य की रणजी ट्राफी टीम का न होना राज्य के खेल प्रेमियों को हमेशा कचोटता रहता होगा। बी जे पी सरकार बड़े बड़े दावे करती है की राज्य की प्रतिभाओं को उचित अवसर मुहैया कराये जायेंगे। लेकिन सब खाक नजर आ रहा है। हमारे यहाँ प्रतिभाओं की कमी नहीं है। यहाँ की क्रिकेट प्रतिभाएं समय- समय पर दूसरे राज्यों की और पलायन करती रही है। इसका जीता जागता उदाहरण महेंद्र सिंह धोनी जैसे क्रिकेटर हैं। यहाँ की जनता जिनके दिलों में ख्वाब होता है। अपने बच्चों को एक अंतरास्तरीय क्रिकेटर बनाने का।इसके लिए वो धीरे- धीरे दूसरे राज्यों में पलायन करते रहे हैं। उत्तराखंड में कोचिंग क्लब खुले हैं। प्रतिभाएं दिन -रात मेहनत भी करती है।लेकिन क्या फायदा उनकी दिन-रात की मेहनत का जो उनको सिर्फ़ क्लब तक सिमट कर रख देती है।

क्योंकि भारतीय टीम में आपको अगर प्रतिनिधित्व करना है , तो पहले आपको रणजी क्रिकेट में प्रदर्शन करना होता है। तब जाकर आपके प्रदर्शन के बारे में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड सोचता है। माना की भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड एक नीजी संस्था है। सरकार के दिशा निर्देश यहाँ नहीं चलते । लेकिन राज्य सरकार की तरफ़ से एक कोशिश तो होनी चाहिए। उन्हें भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के समक्ष अपना पक्ष रखना चाहिए ,की हमें भी राज्य रणजी ट्राफी टीम का प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए । लेकिन न तो राज्य के मुख्यमंत्री जी और न ही खेल मंत्री जी को इसकी फ़िक्र है । खेलमंत्री जी तो केवल अपनी राजनितिक गतिविधियों में व्यस्त हैं। उन्होंने आज तक अन्य खेलों के लिए भी एक भी गंभीर प्रयास नहीं किए हैं। उन्होंने तो सुरेंदर भंडारी का नाम भी सुना हो या नहीं सुना हो । जिसने ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व किया था। और जो लगातार देश- विदेश में अच्छा प्रदर्शन कर पदक जीत रहा है। क्योंकि अभी तक न तो इस खिलाड़ी को राज्य सरकार ने पुरस्कृत किया है और न ही इसकी हौसला अफजाई की है। सुन रहे हैं न मुख्यमंत्री जी और खेल मंत्री जी ।

कब तक हमारी प्रतिभाये यूँ ही मटियामेट होती रहेंगी । और कब तक हम यूँ ही दबे- दबे रहेंगे। हमें भी तो हक़ है आगे आने का और आगे बढ़ने का और अपनी चमक से दुनिया को सराबोर करना है।