Saturday, August 30, 2008

"बिमारी की इन्तहां हो गई"

एक शख्स जिसे मैंने चंद वर्षों पहले जिन्दगी के इस बगिया में हँसते हुई देखा था। आज वह हमेशा बीमार ,बेजार और मुरझाया नजर आता है। ऐसे सख्स आपको हर गली मौहले में मिल जायेंगे । वे सालों से बिमारी का फ़साना लिए नजर आते हैं। उन्हें बेचारे का मैडल मिल जाता है। ऐसा क्यों ? क्या वे जिन्दगी जीना नहीं चाहते हैं ? ऐसा नहीं है, फिर भी ऐसा क्यों ?
शायद वे जिन्दगी से लड़ने का जज्बा भूल चुके हैं। उन्हें जिन्दगी कीपरेशानियों ने कायर बना दिया है। लेकिन वे ये भूल रहे हैं की जिन्दगी में सफल होने के लिए संघर्षों की राहों से होकर गुजरना पड़ता है।
किसी शायर ने ठीक ही कहा था ‘जिन्दगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या ख़ाक जियेंगे’
एक फिल्मी गाने के बोल ये थे "रुक जाना नहीं तू कहीं हार के , काटों पे चलते मिलेंगे साए बहार के ------"
मानव प्रकृति हमेशा से जुझारू रही है । उसने हर असंभव को सम्भव कर दिखाया। हम चाँद तक पहुचने के बाद अब मंगल और सूर्य तक पहुँचने की बात करते हैं। आख़िर कैसे ? ये हमारे उन नायकों ने कर दिखाया । उन बीमारू मानसिकता को ठेंगा दिखाया , वे लदे संघर्ष किया और आज हम उन्ही नायकों को आदर्श मानकर इन संघर्सों की कठिन राहों से जूझते हुई आगे बढ़ रहे हैं। एवरेस्ट फतह किया,उड़ते हुई पंछियों को देखकर विमान तैयार कर दिए , तैरती हुई मछलियों को देखते हुई पानी के जहाज बना दिए , कई लाइलाज बिमारियों की दवा बना डाली । यहाँ तक की कृत्रिम बारिश का भी जुगाड़ कर लीया। एक धावक उसेन बोल्ट इन ओलंपिक खेलों में इतना तेज भागा की हवा का रुख चीरते हुऐ९.६९ सेकंड की गति से १०० मीटर रेस जित गया। मार्क फेलप्स बचपन में माता –पिता का तलाक; लेकिन वो भी उस तैराक की राहें रोक नहीं पायी। प्रेरणा ली संघर्सों से। इस ओलंपिक में आठ स्वर्ण जीतकर इतिहास रच दिया। जिसमे ६ विश्व रिकार्ड धो डाले । रूस की महिला पोलवाल्टर इब्सियानेवा जो हर प्रतियोगिता में एक विश्व रिकार्ड धो डालती है। आख़िर कैसे ?
ये उनका जज्बा है,जुझारूपन है , संघर्षों से लड़ने की छमता है। उन्होंने जिन्दगी के मानदंड तय किए हैं। जो उन्हें हमेशा विजेता बनाते हैं। क्या आप को याद है बास्केटबाल का माइकल जोर्डन , जो नब्बे के दशक में ऐड्स जैसी गंभीर बिमारी से ग्रस्त हो गया था। लेकिन वो लड़ा इस लाइलाज बिमारी से । आज भी हंसी खुशी जी रहा है। जो दूसरो के लिए मिसाल बन गया है।
मेरे कहने का मतलब है आप लड़िये अपने मैं छायी इन बिमारियों से । अपने जीने का ढंग बदलिए ,जुझारू बनिए। एक दिन आप भी इन बिमारियों की परछाई से बाहर निकल के विजेता बनोगे। लोग देखेंगे आप के अन्दर पैदा हुए एक नायक को। शायद में जब उस गली से गुजरूँ तो उस बगिया में एक हंसता मुस्कराता चेहरा मुझे दिखाई दे ।
लडो खूब लडो , उस गायब परछाई से.
जो तुम पे हावी है, वो जज्बा दिखाओ.
जो तू में से एक विजेता पैदा करे.”

तू हिंदू मैं मुसलमा, मैं हिंदू तू मुसलमा

म्यान में तक्शीम हो चुकी तलवारे एक बार फ़िर बाहर निकल आई है । हर जगह दहसत गर्दी आलम है । कई घर के लाल कब्रों में दफ़न हो रहे हैं , तो कई शमशानों में जल रहे हैं । मानवता दफन हो रही है ,इन चंद जालिम लोगों के फरमान से .मजहबी दीवारें खड़ी हो गई है। हर इंसान का अपना कोई वजूद न रहा वो सिमट के रह गया इन जज्बाती मजहबी समूहों मैं । गले मिलने की रश्म आज खाकसार हो रही है। आज सिर्फ़ बाकी रह गया तो तू हिंदू मैं मुसलमा , मैं हिंदू तू मुसलमा। कहाँ छुट गए वो रश्मो रिवाज़ , वो रिश्ते , आज सब कुछ ख़त्म , खत्म और खाक हो रहा है । आज हमारे लिए वो रिश्ते वो आदावार्जी सब पीछे छुट गए हैं। आज भावनात्मक रूप से हम अपने धर्मों के लिए जंग लड़ने मैं व्यस्त हैं । इससे कुछ नहीं मिलेगा शायद नहीं ? हम सब जानते हैं , इतिहास गवाह है। पर फ़िर भी हम अनजान बनकर लदे जा रहे हैं। क्या आज से १००-१५० साल बाद आप जिन्दा रहोगे शायद कोई भी नहीं ? फ़िर क्यों हम अपनी भावी पीढी के लिए द्वेष का माहौल तैयार कर रहे हैं ।

आज जमू-कश्मीर जल रहा है । कोई भी एक इंच पीछे हटने को राजी नहीं। बम बिस्फोटों से कभी मुंबई ,कभी अहमदाबाद ,कभी बंगलुरु, तो कभी कोई और सहर जल रहा है। हर साल मजहबी दंगे भड़क रहे हैं। हम क्यों इन लाल सुर्ख ध्बों की होली खेल रहे हैं। क्यों हम इन आकाओं , गुरुओं के फरमान पर चल रहे हैं। क्या किसी धर्म मैं ये लिखा है की आप दूसरो के खून से होली खेल कर महान बन जाओगे, या अलाह, भगवान तुम पे खुश होकर मेहरबानी करेंगे; शायद कभी नहीं। क्योंकि किसी भी धर्म में ये नहीं लिखा है की बुरे कर्मों का फल अच्छा मिलता है।

तो फ़िर तुम अनजान बन कर क्यों इन राहों पे कांटे बो रहे हो ,तुम क्यों अपने वजूद से दूर हो रहे हो ,क्यों तुम्हे खून अपना पराया नजर आ रहा है। खून तो सबका लाल है। हर किसी के माँ- बाप ,भाई -बहन हैं। क्या तुम्हे हंसता - खेलता जीवन अच्छा नहीं लग रहा है।

इन सब सवालों के जवाब तलाशोगे ,तो शायद ये मजहबी दीवारे टूट जाए। हर कोई खुसहाल नजर आएगा । तब तुम्हे फ़िर से अपना वजूद नजर आएगा। और आपके कानो में एक आवाज हमेशा जिन्दा रहेगी- ------

''हिंदू-मुस्लिम ,सिख- इसाई आपस में है भाई -भाई ''

Thursday, August 21, 2008

आदम खोर बाघों ,गुलदारों का कुशल शिकारी ---- जिम एडवर्ड कार्बेट

( उदय सिंह रावत )

जिम एडवर्ड कार्बेट को जिम एडवर्ड कार्बेट या कारपिट साहब के नाम से भी जाना जाता है । इन्हें कुमाओं एवम गढ़वाल में आदमखोर बाघ एवम गुलदारों के सिकारी के रुप में प्रसिधी मिली थी। इनका जन्म २५ जुलाई १८७५ को नैनीताल में पिता क्रिस्टोफर कार्बेट माता मेरी जैम के घर में हुआ था। इनके पिता नैनीताल में पोस्टमास्टर थे। इनकी एजूकेशन फिलान्दर्ष स्मिथ कॉलेज नैनीताल में मेट्रिक तक हुई । कार्बेट का ग्रीष्मकालीन आवास - गर्नी हाउस नैनीताल और शीतकालीन आवास -कालाढूंगी था। जिम कार्बेट ने बिहार के मोकामा घाट में रेलवे विभाग में लकडी के आपूर्ति हेतु युल इंसपेक्टर की नौकरी की । फ़िर सहायक इंसपेक्टर मास्टर ,स्टोर कीपर ,एवं श्रमिक ठेकेदारी की । १९१४ में कुमाओं से ५०० श्रमिक फ्रांस ले गए । १९२० में रेलवे से त्याग पत्र दिया । १९२० से १९४४ तक नैनीताल नगरपालिका सदस्य भी रहे । १९४४ में ले ० कर्नल के रूप में सैनिकों के जंगल युद्ध के प्रशिक्षक रहे । जिम कार्बेट को तत्कालीन सरकार के द्बारा ''केसर ऐ हिंद'' की उपाधि से समानित किया गया । सिकारी के रूप में जिम कार्बेट ने दस वर्ष की उमर में गुलदार को मारा । '' पवल गढ़ का राजकुमार '' नामक शेर का १९३४ -३५ में सिकार करने के बाद केवल आदमखोर शेरो एवं गुलदारों को ही मारा । १९१८-१९२६ तक आठ वर्षों तक रुद्रप्रयाग के आदम खोर गुलदार जिसने रुद्रप्रयाग के आस-पास के १२५ लोगों को खा लिया था उससे मुक्ति दिलाने हेतु गुलाबराय में उसका सिकार किया था ।

जिम कार्बेट द्वारा लिखित पुस्तक -------- (१) मेंन ईटर्स ऑफ़ कुमायूं (१९४५), (२) मेंन ईटिंग लेंमपर्द ऑफ़ रुद्रप्रयाग , (३) माय इंडिया ,(४)जंगल लोर ,(५) टेम्पल टाइगर (६) ट्री टोप्स ।

इसके अलावा जिम कार्बेट ने भारत अफ्रीका के वनय जीवों पर एक फ़िल्म भी बनाई जो लन्दन के नेचुरल हिस्ट्री मु जियम में रखी गई है। एक कुशल सिकारी के साथ -साथ इन्हें वन्य जीव संरखछन के छेत्र में भी जाना जाता है । इनकी पुस्तक ''मेंन इटर्स ऑफ़ कुमायूं'' ने इन्हें विश्व विख्यात बना दिया । कुमायूं छेत्र में इन्हें विशेस रूप से जाना जाता है । १९ अप्रैल १९५५ को केन्या में दिल का दौरा पड़ने से इनका निधन हो गया । कार्बेट नेशनल की सीमा निर्धारण में उलेखनीय योगदान देने के कारण इस पार्क का नाम इनके मरने के बाद इनके नाम से इसे प्रशिधि प्राप्त हुई । जिम कार्बेट तुम हमेशा हमें याद आते रहोगे चाहे एक सिकारी के रूप में तुम्हारे दिए योगदान का जिक्र हो या एक वन्य जीब प्रेमी हर रूप में तुम याद आओगे ।

खिलाड़ी पदक और एक कदम का फासला
कुछ खिलाड़ी जिनके पावं पदक से एक कदम पहले आकर फिसल गए। ये बड़ा निराशाजनक रहा । नहीं तो हमारे पदक जितने का क्रम शायद कुछ और होता। सायना नेहवाल (बैड़मिंटन),लिएंडर पेस और महेश भूपति (टेनिस ),अखिल कुमार और जितेंदर (मुकेबाजी) ,योगेश्वर दत (कुश्ती) ये सारे खिलाड़ी पदक से एक कदम पहले यानि क्वार्टर फाइनल मुकाबलों में हारे हैं । इनके हौसले की दाद देनी होगी ,ये लडे और यूँ कहें बहादुरी से लडे । ये शान से हारे कोई गम नहीं । क्योंकि ओलंपिक में होता ही ऐसा है । यहाँ पर आप को नाक आउट मुकाबले खेलने होते हैं । रिटेक करने का चांस ही नहीं होता है । एक गलती की और पदक आपके हाथ से फिसला ।
राज्यवर्धन राठोड जो की पिछले ओलंपिक में रजत पदक जीतकर लाये थे । लेकिन इस ओलंपिक में कुछ चंद घंटों के खराब फार्म ने चार साल की मेहनत बेकार कर दी ।
यही है एक पदक विजेता और हारे हुए खिलाड़ी का अन्तर ध्यान भंग हुआ नहीं की पदक आप के हाथ से फिसला नहीं। फ़िर चाहे कई वर्ष की मेहनत हो या एक दिन की सब बेमजा हो जाती है।
वहीँ अभिनव बिंद्रा के पदक जितने के सिलसिले में एक और भारतीय सुशिल कुमार जिन्होंने कुस्ती में कांसे का पदक जीता है, जुड़ गए हैं। इतिहास में पहली बार भारत दो पदकों के साथ खडा है। वहीँ तीसरा पदक भी तय हो गया है। मुकेबाज़ विजेंदर भी सेमीफाइनल में पहुंच गए हैं।
''शाबास मेरे शेरो ''
क्वार्टर फाइनल में हारे हुए खिलाड़ियों को भी सरकार अगर कुछ इनामी राशिः प्रदान करे तो इससे इन हारे हुए खिलाड़ियों का भी उत्साह बढेगा । और वे भी अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रेरित होंगे । अखिल कुमार ने ठीक ही कहा था की '' में स्वर्ण जीतकर लाऊँगा मेरे इन शब्दों को याद रखना और अगर मुझसे कोई खता हो गई (हार गया ) तो मुझे भूल न जाना '' । तो हमें भी इन खिलाड़ियों के प्रदर्शन को भूलना नहीं चाहिए , जिन्होंने भारतीयों के जज्बे और होसले का प्रदर्शन कर दर्शकों की तालियाँ बटोरी। एक खराब प्रदर्शन से भारतीय जनता को इनकी आलोचना करने का हक नहीं है । बल्कि वक्त है इनके वर्षों की मेहनत जो की कुछ पलों में बेकार गई , उनके इस गम को कुछ कम करने के लिए इन्हें गले लगाने का और उनका वीरों जैसा स्वागत करने का । नहीं तो हमारे देश में होता यह है की जीते तो कंधे पर चढा देते हैं । और हारे तो दुत्कार मिलती है। पर आशा है की शायद ---------------- इस बार हम वो काम न करें । जिनसे खिलाड़ियों का दिल टूटता है।

Sunday, August 17, 2008

बेमिसाल , लाजवाब प्रदर्शन

(मार्क फेलप्स ----- गोल्डन मशीन )

वो जो भी कहता है , वो कर दिखाता है। वो ख़ुद पर यकीं रखता है । माता-पिता के तलाक ने उसे बचपन में ही जुझारू बना दिया। वो आत्म विश्वास से लबरेज और जुनूनी सख्स है । या यूँ कहें ये उसकी खेल के प्रति दीवानगी है । वो जब स्वीमिंग के लिए उतरता है तो शार्क जितना पावरफुल हो जाता है । इस शख्स ने रिकार्डों की झडी लगा दी है । मानो जीत उसकी मुठी में कैद हो । ---- जी हाँ लोगों ये है '' द ग्रेट स्विम किंग ---- मार्क फेलप्स । इस अमेरिकन तैराक ने बीजिंग ओलंपिक में रिकार्डों और पदकों की झड़ी लगा दी है । मार्क स्पित्ज़ के रिकार्ड ७ सोने के पदकों का रिकार्ड तोड़ डाला । और उन्होंने देश के लिए इस ओलंपिक २००८ में ८ स्वर्ण जीतकर एक इतिहास रच दिया।

कार्ल लुईस , पावो नुर्मी और स्पित्ज़ जैसे महान खिलाड़ियों की पंक्ति में ख़ुद को भी ला खडा किया। ओलम्पिक में १४ स्वर्ण ( एथेंस के ६ और बीजिंग ओलंपिक के ८ ) जीतने वाले वर्ल्ड के पहले खिलाड़ी बन गए हैं।

रिकार्ड पे रिकार्ड वाह क्या बात है ----- तुझे सलाम ''मार्क फेलप्स ''

सही मायनो में तू ही तो है -------------

'' सिंह इज किंग '''

सा ----वधान फुल्टू बकवास
माहौल गर्म है , जूतम पैजार जारी है।
हर मोहले में नेता पैदा हुआ है ।
हर चूल्हे में चुनावी आग है , बंद बोतल आजाद है ।
क्योंकि भाइओ उत्तराखंड में चुनाव जारी है ।
गांव -गांव के घोटाले गुलज़ार हैं ।
कुछ नेता हरे -हरे नोटों की बरसात कर रहे हैं ।
लग रहा है नेताजी रिजर्व बैंक से पधारे हों ।
नेताजी को हर घर मन्दिर और जनता भगवान नजर आ रही है।
नेताजी सामाजिक जंतु नज़र आ रहे हैं ।
क्योंकि भाइयो उत्तराखंड में चुनाव जारी है।
अगले चुनाव में अपुन को भी खडा होने का है ।
क्योंकि भाई ---- ई उत्तराखंड का चुनाव है ।
नेताजी अपुन तेरे को टिप्स देने का है ।
थोड़ा बेशर्म होने का और खूब नोट -शोट देने का तभी तो वोट मिलेंगा ना -----।


Friday, August 15, 2008

ज्ञान की खोज
( अन्तिम छोर ------ --------? सायद नहीं )

ज्ञान की महिमा अपरम्पार है यह हमारे पुरानो में लिखा गया है। लेकिन ये कहाँ जाकर खत्म होगा
----- सायद पता नहीं। ज्ञान एक ऐसी डिक्सनरी है; जिसमें शब्दकोश जुड़ते ही जाते हैं। आदम युग
से अब तक कई आविस्कर हुए और उनसे हर बार एक नया ज्ञान निकल कर आया। और आज हम लोग चाँद
एटम बम और कंप्यूटर युग तक पहुंच गए। फिर भी हमारी ये ज्ञान प्राप्ति की खोज अपने अन्तिम निष्कर्ष
तक नहीं पहुंच पाई। प्रारम्भ से मानव प्रकृति जिज्ञासु रही है ज्ञान की खोज मैं। और हमारे इसी ज्ञान
की जिज्ञाषा ने हमें पूरे ब्रह्मांड में रहने वाले अन्य जीवों से कोसों आगे पहुंचा दिया है.
आज के समय की बात करें तो कोई व्यक्ति विशेष ये नहीं कह सकता है की मैं दुनिया का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति हूँ। मैं कहूँगा वो ही इस दुनिया का सबसे मुर्ख इंसान है, क्योंकि ब्रह्मांड मैं इतना ज्ञान भरा
पडा है की हमारी कई करोडों पीडी यां भी खोजती रहे तो भी हम उस के अन्तिम छोर तक नहीं पहुंच पाएंगे। हमें
तो
अभी उस ज्ञान के भंडार का बाल्टी भर पानी जितना हिस्सा प्राप्त हुआ है। आधुनिकरण के इस दौर मैं ज्ञान के
भंडार को देखते हुई इसे छेत्र विसेस मैं बाँट दिया गया है। जैसे डाक्टर, इंजिनियर विज्ञानिक -----इन सबका अपना
अपना छेत्र होता है। फिर इनके अंदर भी कई छेत्र हैं। मतलब ज्ञान की खोज मैं एक व्यक्ति विसेस नहीं है. पूरे वर्ल्ड
के लोग इसकी खोज मैं अपने-अपने फिल्ड मैं कार्यरत हैं। कोई किसी को चैलेन्ज नहीं कर सकता है.एक बच्चा भी किसी
किसी बुजुर्ग को ज्ञान दे सकता है। ज्ञान की महिमा इतनी निराली है की आप हर किसी से कोई न कोई ज्ञान ले भी सकते हो और
वो भी आप से कुछ न कुछ लेके ही जाएगा। ये भंडार है ही ऐसा जितना बाँटोगे उसका दुगना ही प्राप्त करोगे.इसमें इन्वेस्ट
करोगे तो कभी घाटे में नहीं रहोगे.
रामायण मैं जब रावन अपनी अन्तिम सांसे गिन रहा था तो भगवान राम ने लक्ष्मण जी को कहा था की जाओ भाई ; रावन जैसे महाज्ञानी से कुछ ज्ञान प्राप्त करो।
कहने का मतलब ये है की आप को अगर एक बुरे आदमी की संगत भी मिल जाए तो भी आप उसके बुरे
विचारों को छोड़ जो अच्छी बातें उसमें है उसको प्राप्त करो। ज्ञान को लेते समय सकारात्मकता का परिचय हमेशा रखना चाहिए.बुरा ज्ञान छन भर का होता है। और एक अच्छा ज्ञान हमेसा फलता फूलता ही है। क्योंकि यह लोक कल्याण के लिए बनता है। हमें एकअच्छे ज्ञान की और हमेशा अग्रसर रहना चाहिए।

''क्योंकि भला ज्ञान निर्विवाद रूप से उतम होता है''
उफ़ ये क्या हो गया----------
(मिशन बीजिंग ओलंपिक---------? ख्वाब अधूरा रह गया--------------)

वर्षों की मेहनत चंद मिनटों में जार-जार हो गई । तोड़ के रख दिया, कोई सुनने वाला नहीं दिल में एक टीसबनकर रह गई । अरबों लोगों के विश्वास का बोझ जो चंद पलों में विस्वासघात बन गया . हीरो से खलनायक बन गये । यही कहानी है------- हमारे उन खिलाड़ियों की जो बड़ी आशा लेकर बीजिंग ओलंपिक गए थे। जनता और मिडिया आरोप- प्रत्यारोप करते नहीं थक रहे हैं। लोग ये भूल रहे हैं की वो भी आप जैसे इंसान हैं।
एक हारे खिलाड़ी का दर्द यूँ बयाँ होता है---------- ड्रेसिंग रूम सुनसान; हर चीज दुश्मन नजर आती है। आसुओं की धार बह रही है दिलासा देने वाला कोई नहीं, अपना दर्द किससे बयान करें, खाना पीना सब बंद, अपना गुस्सा सामने रखी चीजों पर निकल रहे हैं, खेल से नफरत होने लगती है, कदम लड़खडाने लगाते हैं, खिलाड़ी इस मौके पर पागलों की तरह हरकतें करने लगता है.
यह खेल चीज ही ऐसी है;इसमे आपको अपने प्रदर्शन पर तो ध्यान देना होता है. साथ मैं विपक्ष भी होता है। तो साथ मैं जनता के विश्वासों का भी बोझ होता है। इसमें जिसने धेर्य को बनाये रखा और जीत प्राप्त की वो सिकन्दर और हारे हुई खिलाड़ी आलोचना का शिकार बनते हैं। हारे हुए खिलाड़ियों की वो सब बातें याद रखी जाती है; जो खेल से पहले घटित होती है। और फिर देखिये मीडिया का तमाशा हर चीज खोल खोलकर रख देते हैं। अगर खिलाड़ २७ - २८ पर कर गया तो उसे बुजुर्ग खिलाड़ी का तमगा दे दिया जाता है। फिर फिटनेस से लेकर तमाम तरह के आरोपों - प्रत्यारोपों की झडी लगा दे देते हैं। लेकिन वो ये भूल जाते हैं की खिलाड़ी कभी बुजुर्ग नहीं होता है। हाँ प्रदर्शन जवान या बुजुर्ग हो सकता है। खिलाड़ी भी तो इंसान है वो कोई भगवान तो है नहीं की गोल्ड बोले तो गोल्ड ही जीत कर लायेंगे ।
इस देश में सब नेताओं सी बातें करते हैं। लोग ख़ुद क्यों नहीं मैदाने में आते हैं। ओलंपिक तक पहुचने की राह इतनी आसन नहीं है। कई मापदंड तय करने पड़ते हैं, तब जाकर यह सपना साकार होता है। ओलंपिक में विश्वः के देशों के साथ अपने झंडे के नीचे फ्लैग मार्च करना यह भी एक सपने सरीखा होता है।
तभी तो कहा गया है की---------

'' खेल मैं हार -जीत तो होती रहती है, लेकिन उसमें भाग लेना यह सबसे बडी जीत है ''

Thursday, August 14, 2008


अर्जुन महान के इस देश में एक और अर्जुन ----- अभिनव बिंद्रा
''गर हौसले हो बुलंद तो आन्धिओं में भी चिराग जलते हैं''
इस कहावत को सच साबित कर दिखाया अभिनव बिंद्रा ने लोगों ने देखा महान धनुर्धर
अर्जुन के इस देश में एक और अर्जुन को इतिहास रचते हुए । १० मीटर एयर राइफल में चीन के कीनन झू को हराकर अभिनव बिंद्रा ने देश को बीजिंग ओलंपिक २००८ में पहला गोल्ड मैडल दिलाया। व्यक्तिगत
स्पर्धा मैं प्रथम गोलडमैड्लिसट बन कर उन्होंने एक इतिहास रच दिया । पिता ए एस बिंद्रा
और माँ बबली को अपने बेटे पर गर्व है वे फूले नहीं स
माँ रहे हैं। अभिनव बिंद्रा ने अपने
जुझारूपन से इस सपने को हकीकत मैं बदल दिया है । और आने वाले खिलाड़ी उनको आदर्श मानकर
उनसे प्रेरणा लें इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिये । १९८० के बाद सोने के लिए tरस रहे
भारत देश के इस सुखाग्रसत अभियान को ख़तम कर एक नया आयाम रच दिया
कई राज्यों ने उनकी इस उपलब्धि पर पुरस्कारों घोसना की है यह सही भी है इससे खिलाड़ी
का होसला बढ़ता है आज हर गली मैं बिंद्रा - बिंद्रा का शोर है।
''हमें गर्व है देश के इस होनहार सपूत पर''