Sunday, March 1, 2020

शहीदी दिवस


हर बरस शहीदी दिवस पर याद आते हैं वो वीर 
जाने कहाँ किस पथ पर चले जाते हैं वो वीर 
ढेरों  शौर्य गाथाओं में याद आते हैं वो वीर 
शौर्य, समर्पण ,देशभक्ति  के जज्बे से लबरेज 
जब भी याद  रुला जाते हैं वो वीर 
हर बरस शहीदी दिवस पर याद आते हैं वो वीर 

क्या सहा  कितने कष्ट उठाये पर मुहं से उफ़ तक निकली 
चौड़ी छातियों ने कितनी गोलियां बारूद झेले 
पर मेरी माँ भारती के शीश को झुकने दिया उन वीरों ने 
हमारी यादों में बसते हैं वो वीर 
हर बरस शहीदी दिवस पर याद आते हैं वो वीर 

उनकी वीरता में वो चमक  है वो प्रेरणा है 
तन का रोआँ रोआँ जागृत कर जाते हैं वो वीर 
उन शहीदों की माँओं ने कितने जतन  से सहेजा था उनको 
शायद इन्हीं अदम्य शौर्य पराक्रम साहस के लिए 
गौरवान्वित हैं आँखें नम हैं सबको रुला गए वो वीर 
हर बरस शहीदी दिवस पर याद आते हैं वो वीर 
















Monday, September 10, 2012

durlabh vichar


दुर्लभ विचार ( व्यंग)


काश में भी  विधायक होता , मेरी भी निकल पड़ती।  एक बार   जीतो और फिर पुरे पांच साल तक सरकार को हिलाए  रखो , कभी ये- कभी वो। जब तक ये वो का लेनदेन है तब तक मिलता ही रहेगा। अभी खबर उडी थी की किसी राज्य  में विपक्षी पार्टी के विधायक का सौदा दस करोड़ में हुआ है। में तो अपनी सीट से उछल पड़ा। सोचा ये लाइन अपुन को भी सूट करेगा। बस एक बार जीत के आये नहीं की अपना भाव भी करोरों में लगेगा। फिर क्या पांच साल ऐश करो। ये भी अच्छा धंधा है; क्यों ? फिर पांच साल बाद पता नहीं क्या होगा। अपने हिन्दुस्तानी लोग भी क्या -क्या धंधे ढूढ लाते हैं। वैसे जो भी है मजेदार है। जनता का क्या है , हर पांच साल - दो साल में वोट दे ही देगी  पर हमें तो विधा यक बनने का एक ही चांस बहुत है। अपना देश है यहाँ तो जीतने के लिए  अधा - पौवा का नारा लगाओ और  वोट बटोर लो।  हमारी जनता तो मासूम गऊ है। जिधर हांकोगे चल पड़ेगी। अब तो बस जीत कर विधायक बनना ही पड़ेगा। मेरे जैसे कई और   दुर्लभ जंतु जो इस देश में जीवन जी रहे हैं सायद उनके भी कान खड़े हो गये होंगे। तो भया जी हम तो तैयारी में जूट जाते हैं। क्योंकि अगला इलेक्शन हमारे लिए ओलंपिक से बड़ा होने वाला है। क्योंकी  ओलंपिक जीतने पर ज्यादा से ज्यादा दो करोर मिलेंगे पर यहाँ तो अथाह समुन्दर है। दस- बारह लोटे हम भी ले लेंगे। क्या फर्क पड़ जायेगा। भया अपना भविष्य पहले है जनता का क्या वो तो गऊ है जिधर हांकोगे चल पड़ेगी।  

Wednesday, October 26, 2011

Pyaar

डायरी के पन्नों को पलटते हुए एक बार फिर उसकी फोटो नजर आई.

एक बार फिर पुराणी यादों का फ्लाशबैक,

जैसे कल कल की ही बात हो

मोबाइल पे होने वाली रोमांस भरी बातें

दिल पे एक टिस छोड़ गयी

एक बार फिर गहरा दर्द दे गयी वो बातें

दिन भर के काम के बाद शाम को मोबाइल पे ढेर सारी बातें करना

एक अलग ही जोशे जूनून होता था, सारी थकान काफूर

वो पल वो यादें दिल में आज भी संजोये रखी

महसूस होता है बड़ी शिद्दत से, महसूस होता है

एक पल में वो आज ख़ाक हो गया, कहाँ कमी रह गयी………..

न वो झुक पाई, न मैं झुक पाया आखिर क्यों………

मैं दिखने के बाद उससे मिलने का साहस न जुटा पाया

हम ऐसे प्रेमी न बन सके जो उसकी गली में जाके, उसका पता पूछ सके

हम ऐसे प्रेमी न बन सके जो विलेन बन के, उसको अपनी बाँहों में खिंच सके

हम तो बस एक सच्चे दोस्त वाले प्रेमी ही रहे

जो उसके यादों को सिद्दत से दिल में समाये रखे हैं

प्यार में हार इसका अपना ही मजा है

ये आपको ता उम्र कतरनो में मुड़- मुड़ के पुरानी यादों की तरफ खिंच ले जाती है……..

Saturday, July 30, 2011

राजनितिक उठापटक का दौर

भारतीय राजनीती में उथल- पुथल मची हैएक ही नाम है जो भारतीय राजनीती में एक सनसनी की मानिंद अपने विचारों पर अडिग, गाँधीवादी विचारधारा के साथ और नवपरिवर्तन का पुरजोर समर्थक वो शख्स उम्र के आखिरी पड़ाव में होते हुए भी युवा विचारों से लैस और चाहता है की बूढ़े होते सविंधान में कुछ आमूल चूल परिवर्तन जरुरी हैएक ही तो नाम है अन्ना हजारेएक जिद जो गाँधी जी में थी और आज वही जिद अन्ना हजारे में भी दिखाई देती हैतरीका वही है अहिंसा का, बस समय का बदलाव है तब गाँधी जी देश की आजादी के लिए लड़े थे और आज अन्ना हजारे ; देश को लूट रहे अपने गध्धारों के खिलाफ जंग छेड़े हुए हैंवक़्त का तकाजा भी हैआजादी के बाद से आज तक देश की बागडोर बीच के से वरसों को छोड़ दिया जाये तो कांग्रेस पार्टी के ही हाथ में रही हैऔर वो चाहते भी हैं की किसी भी तरह हो शासन हम ही चलायें उनको फर्क नही पड़ता है देश डूबे या राजनीती करने के लिए किसी भी हथकंडे का इस्तेमाल करना हो वो इसके लिए तैयार बैठे हैंवो एक प्रजातंत्रीय तरीके से देश नही चला रहे बल्कि वो एक राजा की तरह देश में शासन चलाना चाहते हैंऔर सत्ता का केंद्र बिंदु गाँधी परिवार ही तो बन बैठा हैक़ि भैया अब इंदिरा बिटिया है , अब संजय बाबा है वो नहीं तो राजीव भैया और अब नया राग राहुल बाबाऐसा लग रहा है जैसे हम सोलहवीं सदी में जी रहे हैंजैसे हम स्ट से पीड़ित प्रजा हैं और राहुल बाबा आकर हम गरीबों का उद्धार कर देंगेइससे घटिया स्तर और भारतीय राजनीती का क्या हो सकता हैहम गुलामी मानसिकता से ग्रस्त भारतीय समाज में जी रहे हैंइनके लोगों की डिग्रियां उठाओ तो कहीं USA का तमगा है कहीं इंग्लैंड वगैरा- वगैराऔर तब आकर ये फाइव स्टार होटलों से देश के लोगों का भविष्य तय करते हैंवाह रे गाँधी के देशकरते गलत अपने को हैं और नाम छोड़ जाते गाँधी जी काये तो भैया मोड़रेट लोग हैं कहीं कोई दुर्घटना होती है तो भईया डिजाइनर से तैयार कपडे पहन के ही ये वहां तक आते हैं की किस समय कौन सा सूट मैच करेगाऔर यही एक बुधिजीवी वर्ग का भी दृष्टिकोण बन चूका हैकांग्रेस चाहती है की देश जैसा चल रहा है वैसा ही चले कोई हमें परेशान करे तो उन्हें भी समझ जाना चाहिए की पीढियां बदल चुकी हैं । ये नव भारत है लोग शिक्षित हैं गुलामी मानसिकता अब नही चलने वाली हैऔर समय के हिसाब से संविधान में परिवर्तन जरुरी है क्यों की ये समय की मांग हैमैं पूरी पार्टी को कटघरे में खड़ा नहीं करना चाहताअभी वक्त है वो पुरानी भूलों में सुधार करेंदेश में बढ़ते करप्शन ,कालेधन जैसे मुद्दों पर निर्भीक और निष्पक्ष निर्णय लेअगर आज अन्ना हजारे की सिविल सोसाइटी जनलोकपाल जैसा मसौदा ले के रही है और पूरे देश की जनता उनके समर्थन में है तो जरुरी है की उनको ले कर चलें

नहीं तो समय का क्या है “ इतिहास समय के साथ बदलता रहता है ”।