भारतीय राजनीती में उथल- पुथल मची है। एक ही नाम है जो भारतीय राजनीती में एक सनसनी की मानिंद अपने विचारों पर अडिग, गाँधीवादी विचारधारा के साथ और नवपरिवर्तन का पुरजोर समर्थक। वो शख्स उम्र के आखिरी पड़ाव में होते हुए भी युवा विचारों से लैस और चाहता है की बूढ़े होते सविंधान में कुछ आमूल चूल परिवर्तन जरुरी है । एक ही तो नाम है अन्ना हजारे। एक जिद जो गाँधी जी में थी और आज वही जिद अन्ना हजारे में भी दिखाई देती है। तरीका वही है अहिंसा का, बस समय का बदलाव है तब गाँधी जी देश की आजादी के लिए लड़े थे और आज अन्ना हजारे ; देश को लूट रहे अपने गध्धारों के खिलाफ जंग छेड़े हुए हैं। वक़्त का तकाजा भी है।आजादी के बाद से आज तक देश की बागडोर बीच के ५ से ७ वरसों को छोड़ दिया जाये तो कांग्रेस पार्टी के ही हाथ में रही है। और वो चाहते भी हैं की किसी भी तरह हो शासन हम ही चलायें। उनको फर्क नही पड़ता है देश डूबे या राजनीती करने के लिए किसी भी हथकंडे का इस्तेमाल करना हो वो इसके लिए तैयार बैठे हैं। वो एक प्रजातंत्रीय तरीके से देश नही चला रहे बल्कि वो एक राजा की तरह देश में शासन चलाना चाहते हैं। और सत्ता का केंद्र बिंदु गाँधी परिवार ही तो बन बैठा है। क़ि भैया अब इंदिरा बिटिया है , अब संजय बाबा है वो नहीं तो राजीव भैया और अब नया राग राहुल बाबा। ऐसा लग रहा है जैसे हम सोलहवीं सदी में जी रहे हैं। जैसे हम कस्ट से पीड़ित प्रजा हैं और राहुल बाबा आकर हम गरीबों का उद्धार कर देंगे। इससे घटिया स्तर और भारतीय राजनीती का क्या हो सकता है। हम गुलामी मानसिकता से ग्रस्त भारतीय समाज में जी रहे हैं। इनके लोगों की डिग्रियां उठाओ तो कहीं USA का तमगा है कहीं इंग्लैंड वगैरा- वगैरा। और तब आकर ये फाइव स्टार होटलों से देश के लोगों का भविष्य तय करते हैं। वाह रे गाँधी के देश। करते गलत अपने को हैं और नाम छोड़ जाते गाँधी जी का। ये तो भैया मोड़रेट लोग हैं। कहीं कोई दुर्घटना होती है तो भईया डिजाइनर से तैयार कपडे पहन के ही ये वहां तक आते हैं की किस समय कौन सा सूट मैच करेगा । और यही एक बुधिजीवी वर्ग का भी दृष्टिकोण बन चूका है। कांग्रेस चाहती है की देश जैसा चल रहा है वैसा ही चले कोई हमें परेशान न करे। तो उन्हें भी समझ आ जाना चाहिए की पीढियां बदल चुकी हैं । ये नव भारत है लोग शिक्षित हैं गुलामी मानसिकता अब नही चलने वाली है। और समय के हिसाब से संविधान में परिवर्तन जरुरी है क्यों की ये समय की मांग है। मैं पूरी पार्टी को कटघरे में खड़ा नहीं करना चाहता। अभी वक्त है वो पुरानी भूलों में सुधार करें। देश में बढ़ते करप्शन ,कालेधन जैसे मुद्दों पर निर्भीक और निष्पक्ष निर्णय ले। अगर आज अन्ना हजारे की सिविल सोसाइटी जनलोकपाल जैसा मसौदा ले के आ रही है और पूरे देश की जनता उनके समर्थन में है तो जरुरी है की उनको ले कर चलें ।
नहीं तो समय का क्या है “ इतिहास समय के साथ बदलता रहता है ”।
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