Thursday, September 11, 2008

"न्याय की जीत का एक और स्तम्भ"

दस जनवरी १९९९ एक अमीर घराने के बेटे संजीव नंदा सुबह के समय नशे की हालत में साऊथदिल्ली के लोधी रोड पर ६ लोगों को बी० एम० डब्लू ० कार से रौंद देते हैं। जिसमे तीन पुलिस कर्मी और तीन अन्य लोग सामिल होते हैं। हद तब हो जाती है जब वे घटनास्थल पर रुके बिना अपने दोस्त के घर गाडी लेकर फरार हो जाते हैं। वहाँ वो सबूतों को मिटाने के लिए खून से सनी गाडी और मरे हुए लोगों के चिपके हुए मांस को धो डालते हैं। ये हैवानियत की पराकास्ता नही तो और क्या है? प्रजातंत्र की दुहाई देने वाले इस देश में आख़िर ये क्या हो रहा है? नौ साल बीत चुके हैं , इस घटना को । और ये केस घिसट - घिसट के आगे बढ़ रहा था। मीडिया की पहल और स्टिंग आपरेशनों ने इस केस में मदद की। ये बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण रहा की, इसमे बचाव व अभियोजन पक्ष के वकील आर०के०आनन्द(कांग्रेस पार्टी के सदस्य) और ए० यु० खान भी सांठगांठ में संलिप्त रहे। लेकिन अभी जो फैसला आया उसने एक बार फ़िर न्यायपालिका को सर्वोच्च करार दे दिया। हफ्ते भर पहले दिल्ली की एक निचली अदालत ने जाने माने व्यवसायी सुरेश नंदा के तीस वर्षीय बेटे संजीव नंदा को गैर इरादतन हत्या का दोसी ठहराते हुए पाँच साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई। और व्यवसायी राजीव गुप्ता समेत तीन अन्य लोगों को भी दोसी पाया। और दोनों वकीलों को न्याय में बाधा पहुचाने के आरोप में चार महीने की वकालत पर प्रतिबंध लगाया। इस केस के लंबे समय तक चलने की जदोजहद ने एक बार फिर साबित किया की इसमे पैसे पानी की तरह बहाए गए होंगे और रिस्वतों के दौर पे दौर चले होंगे।
आख़िर अमीर बाप की ये बिगडैल संताने कब तक गरीब मासूमों को चीटियों की तरह रौंदती रहेंगी। पैसे के घमंड में चूर होकर ये कुछ भी करती रहे, आख़िर ये हक़ इन्हे किसने दिया? ऐसा ही जेसिका लाल हत्याकांड मामले में हुआ था। वो तो मीडिया का सुक्र्गुजार होना चाहिए नहीं तो इनका वश चले तो ये लोग ग़रीबों को न्यायालय तक भी न पहुचने दे। विशाल भारत का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। लेकिन ये कुछ बिगडैल अमीर जादो ने इसकी चमक धूमिल करने की कोशिस की है। इन्हे सबक लेना चाहिए उन अमीर घरानों की होनहार संतानों से जिन्होंने एक सीमा को बनाए रखते हुए देश का नाम रोशन किया। जिनमे अनिल और मुकेश अम्बानी एवं रतन टाटा जैसे लोग हैं। हमे आशा रखनी चाहिए की न्याय की सर्वोच्च साखा भी इस फैसले को बरकरार रखेगी। क्योंकि ये तो चलन है की यहाँ हार के बाद ये लोग आगे भी अपील दायर करेंगे।
लेकिन हम विश्वास के के साथ यह कह सकते हैं की जेसिका लाल हत्याकांड में दिए गए सही फैसले की तरह इस फैसले का भी सही निर्णय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया जायेगा।

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