Thursday, September 11, 2008

"बचपन प्यारा बचपन"

बचपन हर किसी का बचपन। यूँ समझो सपनो का आशियाना। सपनो की कोई सीमा नहीं,ये पुरे ब्रह्माण्ड तक चक्कर लगाती हैं। रेत के ढेर की मानिद जो हवा के झोंके के साथ कभी उस छोर तो कभी इस छोर चल पड़ती हैं। सपने कई रंगीनियों में रंगे होते हैं। कहीं कोई मछलियों के साथ तैरता हुआ सागर की तलहटियों में पहुँच जाता है, तो कोई पक्षियों के साथ आसमान की सैर कर रहा होता है। कोई जंगलों में खोया है , तो कोई बारिश की बूंदों में खोया - खोया नजर आता है। सबकी अपनी - अपनी फंतासी दुनिया।
एक जुनूनी दौर होता है। हर कोई अपनी गली का शेर, हर किसी को एक शाबाशी का इन्तजार, हर किसी के अपने - अपने दोस्त, जाती -पाती की दीवारों से परे। सब खो जाते हैं इन रंगीनियों में। सब अनाडी होते हैं। लेकिन सबको लगता है की हम ही मझे हुए खिलाडी हैं। ढेरों सवाल मन को उधेड़ते हैं , दार्शनिक जान पड़ते हैं। खेल और बचपन जैसे दोनों एक दुसरे के लिए बने हैं। गुडी - गुडिया से लेकर चोर - पुलिस तक का खेल। हर खेल अनोखा होता है। सबका अपना अंदाज होता है।
हर बुजुर्ग, हर जवान मर्द, हर औरत , हर लड़की ; सबके अपने - अपने बचपन के किस्से होते हैं। जितने मुह उतनी बातें; हर कोई संजो के रखता है इन पलों को। उन यादों को जो दिल में मीठा अहसास जगा जाती है। और कोई क्यों न संजोये इन यादों को। क्योंकि यह होती ही है एक कामेडी पिक्चर की तरह। जिसमे हर सीन के बाद हँसी छुट पड़ती है। कोई हँसे या न हँसे लेकिन हर वो सख्स हंस पड़ता है; जिसकी ये बचपन की दास्ताँ होती है। शायद ये होती ही इतनी मजेदार है।
प्यारा बचपन जो हर किसी के दिल की हार्ड डिस्क में सदैव मौजूद रहता है। जिसका डाटा कभी मिटता नहीं जब तक साँसे जिंदा रहती हैं।

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