Thursday, September 11, 2008

"निजी क्षेत्र के पीछे का सच "

निजी क्षेत्र जो इस समय नई बुलंदियों को छू रहा है। ऐसे में हर किसी का रुझान इस और है। युवाओं में भी इस का क्रेज है। इस क्षेत्र में सफलता, नाम और पैसा तीनो उपलब्ध है। लेकिन आपने इसके पीछे के दुसरे कटु सत्यों पर भी नजर डाली। शायद नहीं? यदि आप इसके पीछे के यथार्थ धरातल को देखे तो आप चोंके बिना नहीं रहोगे।
आज अगर हकीकत देखेंगे तो पायेंगे की इन निजी क्षेत्रों में योग्यता के आधार पर तो लोग चुने जा रहे हैं। लेकिन इन निजी क्षेत्रों में ही नौकरियों के लिए सिफारिश का चलन भी बढ़ता जा रहा है। और स्थति भयावह होती जा रही है। सिफारशी लोग जिनमे किसी का भाई, किसी के पापा, किसी के जीजा, किसी की बुवा------------------------------- ऐसे कई नाते - रिश्तेदार हैं । जो उच्च पदों पर है। वे लोग अपनी सिफारिश या दबदबे के बल पर अपने लोगों को शामिल कर लेते हैं। ऐसे में योग्य प्रतिभाएं धरी की धरी रह जाती हैं। जिनका न आगे न पीछे कोई सिफारशी गाडफादर है। वो लोग मुश्किल में पड़ जाते हैं। इंटरव्यू के लिय्रे जाते वक्त तो उनमे बड़ा उत्साह होता है। लेकिन इन्हे बेदखल कर दिया जाता है, बिना सिफारिश के। मतलब हर दामन पाक साफ़ नहीं है। दाग के छींटे कहीं न कहीं तो रहते हैं, क्योंकि ये कलयुग है। सब की तमना जवान होती है, वो चाहते हैं अच्छे रास्ते जहाँ वे मेहनत से हिला कर रख दे दुनिया को और चढ़ जाए सफलता की अनगिनत सीढियां पर। उनको यहाँ मिलती है तो जिल्लत । वो कहाँ से लाये सिफारशी प्रमाणपत्र । ऐसे में वो क्या करे? वो थके हारे रह जाते हैं। वो मजबूर हो जाते हैं। या तो वो जिन्दगी से समझौता कर लेते हैं या दबी हुई चिंगारी से एक आक्रोश का जनम होता है। जो ग़लत हाथों में पड़कर दुसरे तरीके ईजाद कर लेते हैं। और फ़िर कुछ बेरहम इंसानों के ग़लत फैसलों का फल सारी जनता को भुगतना पङता है। इन चिंगारियों का हस्र भी बुरा होता है। या तो वो पुलिस की गोलियों का निशाना बनते हैं। या फ़िर जेल उनका नया आशियाना बनती है।
आज ऐसे दफ़न होते लोगों को उबारने की जरूरत है। कौन इस सिस्टम में सुधार लाएगा शायद यह एक अबूझ पहेली है।

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